अल्बनीज़-ट्रम्प शिखर सम्मेलन: महत्वपूर्ण खनिज आपूर्ति श्रृंखलाओं में भू-आर्थिक निर्भरता को संतुलित करना
सारांश
20 अक्टूबर 2025 को व्हाइट हाउस में आयोजित ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री एंथनी अल्बनीज़ और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की पहली द्विपक्षीय बैठक, वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं और संसाधन कूटनीति के नए अध्याय का प्रतीक है।
चीन द्वारा महत्वपूर्ण खनिजों पर नियंत्रण और निर्यात प्रतिबंधों के बाद, यह बैठक पश्चिमी देशों में ऊर्जा सुरक्षा, औद्योगिक आत्मनिर्भरता और रणनीतिक गठबंधन की दिशा तय करने के लिहाज से निर्णायक मानी जा रही है।
मुख्य उद्देश्य—ऑस्ट्रेलिया के विशाल खनिज भंडारों में अमेरिकी निवेश को आकर्षित करना और “फ्रेंडशोरिंग” (मित्र देशों में आपूर्ति श्रृंखला निर्माण) को गति देना—वैश्विक भू-आर्थिक ढांचे को पुनः परिभाषित कर सकता है।
परिचय: खनिजों की नई भू-राजनीति
21वीं सदी की औद्योगिक दौड़ में तेल की जगह अब लिथियम, कोबाल्ट और रेयर अर्थ तत्वों ने ले ली है।
ये खनिज न केवल इलेक्ट्रिक वाहनों और नवीकरणीय ऊर्जा प्रणालियों की रीढ़ हैं, बल्कि उन्नत रक्षा तकनीक, एआई चिप्स और अंतरिक्ष अभियानों के लिए भी अनिवार्य बन चुके हैं।
हालाँकि, इनका वैश्विक उत्पादन और प्रसंस्करण भारी मात्रा में चीन पर निर्भर है — जो रेयर अर्थ तत्वों के 80% से अधिक उत्पादन और परिष्करण को नियंत्रित करता है।
अक्टूबर 2025 में बीजिंग द्वारा कुछ महत्वपूर्ण खनिजों पर निर्यात नियंत्रण लगाए जाने के बाद, पश्चिमी देशों में वैकल्पिक आपूर्ति नेटवर्क बनाने की आवश्यकता पहले से अधिक तीव्र हो गई है।
ऐसे समय में ऑस्ट्रेलिया—जिसके पास विश्व के सबसे बड़े लिथियम, निकल और कोबाल्ट भंडार हैं—एक भरोसेमंद साझेदार के रूप में उभरा है।
प्रधानमंत्री अल्बनीज़ की यह वाशिंगटन यात्रा, इस अवसर का रणनीतिक उपयोग करते हुए ऑस्ट्रेलिया को वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला के केंद्र में स्थापित करने का प्रयास है।
चीन की पकड़ और पश्चिमी देशों की रणनीतिक दुविधा
चीन का खनिज क्षेत्र पर नियंत्रण अब केवल आर्थिक लाभ नहीं, बल्कि भू-राजनीतिक प्रभाव का साधन बन चुका है।
2025 के ट्रम्प प्रशासन के "लिबरेशन डे टैरिफ" — सहयोगी देशों सहित सभी आयातों पर 10% शुल्क — के जवाब में बीजिंग ने रेयर अर्थ और बैटरी धातुओं पर निर्यात पाबंदियाँ लागू कीं।
इस कदम को अमेरिका ने “आर्थिक हथियारकरण” कहा। अमेरिकी ट्रेजरी सचिव स्कॉट बेसेन्ट ने स्पष्ट किया कि “पश्चिमी निर्भरता को समाप्त करने का समय आ गया है।”
अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) का अनुमान है कि 2040 तक स्वच्छ ऊर्जा संक्रमण के कारण इन खनिजों की वैश्विक मांग चार गुना तक बढ़ जाएगी।
ऐसे में, अमेरिका जैसे देशों के लिए चीन से निर्भरता खत्म करना और वैकल्पिक आपूर्तिकर्ता खोजना एक अनिवार्यता बन गई है।
ऑस्ट्रेलिया की भूमिका और अवसर
ऑस्ट्रेलिया के पास अवसर असाधारण हैं —
- विश्व का 52% लिथियम उत्पादन (2024),
- विशाल कोबाल्ट और निकल भंडार,
- और स्थिर लोकतांत्रिक शासन संरचना।
परंतु सबसे बड़ी चुनौती है प्रसंस्करण।
वर्तमान में 90% से अधिक ऑस्ट्रेलियाई खनिजों का परिष्करण चीन में होता है।
इसी कमजोरी को दूर करने के लिए अल्बनीज़ सरकार ने अप्रैल 2025 में $1.2 बिलियन का “क्रिटिकल मिनरल्स स्ट्रैटेजिक रिज़र्व” लॉन्च किया — जिसका उद्देश्य घरेलू प्रसंस्करण सुविधाएँ स्थापित करना और अमेरिकी व जापानी निवेश आकर्षित करना है।
व्हाइट हाउस वार्ता में यह प्रस्ताव अमेरिकी पूंजी को सीधे ऑस्ट्रेलियाई खनन और परिष्करण संयंत्रों से जोड़ने की दिशा में एक निर्णायक कदम हो सकता है।
इससे “फ्रेंडशोरिंग” मॉडल को वास्तविक धरातल पर उतारने में मदद मिलेगी — अर्थात् आपूर्ति श्रृंखला को मित्र देशों में स्थानांतरित कर जोखिम कम करना।
शिखर सम्मेलन के प्रमुख एजेंडे
1. महत्वपूर्ण खनिज साझेदारी
ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका के बीच “क्रिटिकल मिनरल्स पार्टनरशिप” का विस्तार मुख्य एजेंडा है।
ऑस्ट्रेलियाई प्रस्ताव के अनुसार, अमेरिका न केवल निवेश करेगा बल्कि बाजार मूल्य स्थिरीकरण में सहयोग भी करेगा।
वित्त मंत्री जिम चाल्मर्स के अनुसार, यह “एक विश्वसनीय आपूर्तिकर्ता और दीर्घकालिक निवेश गारंटी” के बीच संतुलन बनाने का अवसर है।
संभावना है कि खनिज सहयोग के बदले अमेरिका ऑस्ट्रेलियाई बीफ और वाइन पर लगे टैरिफ में कुछ राहत दे सकता है।
2. व्यापार और टैरिफ
ट्रम्प प्रशासन की 10% टैरिफ नीति सहयोगियों के लिए भी बाधा बन रही है।
ऑस्ट्रेलिया चाहता है कि महत्वपूर्ण खनिजों पर यह दर घटाई जाए या विशेष छूट दी जाए।
2024–25 में अमेरिकी बाजार को ऑस्ट्रेलियाई निर्यात में 15% की वृद्धि दर्ज हुई है, जो वार्ता में ऑस्ट्रेलिया की स्थिति को मजबूत करती है।
3. सुरक्षा और AUKUS
आर्थिक चर्चा के समानांतर, रक्षा क्षेत्र भी वार्ता का अहम हिस्सा रहेगा।
AUKUS पनडुब्बी सौदे की प्रगति, दक्षिण चीन सागर में चीनी गतिविधियाँ, और ऑस्ट्रेलिया के रक्षा व्यय (2% GDP से अधिक करने की अमेरिकी मांग) प्रमुख विषय रहेंगे।
हालाँकि इस बैठक का प्राथमिक फोकस आर्थिक सहयोग है, पर सुरक्षा ढांचा दोनों देशों के हितों को गहराई से जोड़ता है।
वैश्विक प्रभाव: संसाधन कूटनीति का नया अध्याय
यदि यह शिखर सम्मेलन अपेक्षित परिणाम देता है, तो यह वैश्विक संसाधन शासन में एक नई दिशा तय करेगा।
अमेरिकी निवेश से ऑस्ट्रेलियाई खनिज प्रसंस्करण में तेजी आएगी, जिससे चीन के प्रभुत्व में कमी और पश्चिमी देशों के बीच सामूहिक आपूर्ति सुरक्षा को मजबूती मिलेगी।
आर्थिक दृष्टि से यह सौदा ऑस्ट्रेलिया के लिए रोजगार सृजन और राजस्व विविधीकरण का अवसर है, जो अब तक लौह अयस्क और कोयले पर अत्यधिक निर्भर रहा है।
पर्यावरणीय दृष्टि से यह चुनौती भी है—खनन विस्तार से जुड़े कार्बन उत्सर्जन और स्थानीय पारिस्थितिकी पर प्रभाव के कारण सख्त ESG (Environmental, Social, Governance) मानदंड लागू करने होंगे।
राजनयिक दृष्टि से सबसे बड़ी परीक्षा होगी —
क्या ऑस्ट्रेलिया अमेरिका के साथ गहराई बढ़ाते हुए अपने सबसे बड़े व्यापारिक साझेदार चीन के साथ संबंधों में संतुलन बना पाएगा?
चुनौतियाँ और अनिश्चितताएँ
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अमेरिका की आंतरिक राजनीति:
ट्रम्प की "America First" नीति के कारण घरेलू विरोध बढ़ सकता है। अमेरिकी कांग्रेस में विदेशी निवेश के लिए अनुमोदन में देरी संभावित है। -
ऑस्ट्रेलिया की कूटनीतिक जटिलता:
बीजिंग पहले ही ऑस्ट्रेलिया की नई खनिज नीति को "शत्रुतापूर्ण आर्थिक गठबंधन" कह चुका है।
किसी भी नई अमेरिकी साझेदारी से चीन के साथ व्यापारिक तनाव बढ़ सकता है। -
पर्यावरण और सामाजिक स्वीकृति:
खनिज उत्खनन से जुड़ी परियोजनाओं को स्थानीय समुदायों और पारिस्थितिक समूहों का विरोध झेलना पड़ सकता है।
निष्कर्ष
अल्बनीज़-ट्रम्प शिखर सम्मेलन केवल दो देशों के बीच आर्थिक सौदे की चर्चा नहीं है;
यह उस युग की शुरुआत है जिसमें महत्वपूर्ण खनिजों को नया तेल कहा जा सकता है —
महंगे, रणनीतिक, और शक्ति संतुलन के केंद्र में।
ऑस्ट्रेलिया के लिए यह अवसर है अपनी खनिज संपदा को केवल निर्यात के रूप में नहीं, बल्कि भू-आर्थिक शक्ति के साधन के रूप में रूपांतरित करने का।
अमेरिका के लिए यह साझेदारी इंडो-पैसिफिक में एक विश्वसनीय खनिज नेटवर्क की नींव रख सकती है, जो चीन की पकड़ को सीमित कर सके।
परंतु यह साझेदारी तभी स्थायी होगी जब दोनों देश आर्थिक हितों के साथ-साथ समान नैतिक, पर्यावरणीय और सुरक्षा दृष्टिकोण साझा करेंगे।
अंततः, यह शिखर सम्मेलन इस बात की पुष्टि करता है कि 21वीं सदी की वास्तविक शक्ति न केवल सैन्य क्षमता में, बल्कि खनिज आपूर्ति श्रृंखलाओं की स्वायत्तता में निहित है।
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